मृत्यु और उस से डरने का कारण
अगर सभी मौत के न आने को लेकर सुनिश्चित हो जाते तो कोई भी अपनी स्थिति से ख़ुश नही होता, लोगों से अगर कुछ माँगा जाता तो वह मना कर देते, और इस प्रकार अपने जीवन और इस संसार की भाग दौड़ से थक जाते जैसे लंबी उम्र पाने वाला इंसान जीवन से थक कर मौत की दुआ करता है और इस संसार से छुटकारा पाना चाहता है।
विलायत पोर्टल :
इमाम सादिक़ अ. फ़रमाते हैं कि, अगर अल्लाह ने मौत को न रखा होता तो यह धरती लोगों के लिए छोटी पड़ जाती, घर, खेत और जीवन की ज़रुरी सामग्री और साधन को लेकर कठिनाईयाँ होतीं, मौत के न होने से लोगों में लालच और संगदिली अधिक हो जाती, अगर सभी मौत के न आने को लेकर सुनिश्चित हो जाते तो कोई भी अपनी स्थिति से ख़ुश नही होता, लोगों से अगर कुछ माँगा जाता तो वह मना कर देते, और इस प्रकार अपने जीवन और इस संसार की भाग दौड़ से थक जाते जैसे लंबी उम्र पाने वाला इंसान जीवन से थक कर मौत की दुआ करता है और इस संसार से छुटकारा पाना चाहता है। (तौहीदे मुफ़ज़्ज़ल, पेज 158)
इस्लामी दुनिया के मशहूर फ़्लासफ़र अल्लामा मुल्ला सदरा का कहना है कि, मौत किसी बुरी चीज़ का नाम नहीं है बल्कि यह मरने वाले और दूसरे लोगों के लिए अच्छी चीज़ है, मरने वाले के लिए इसलिए अच्छी है क्योंकि उसे इस संसार की कठिनाईयों से छुटकारा मिल जाता है और अल्लाह की बारगादह में पहुँच जाते हैं, और दूसरे लोगों के लिए इस लिए अच्छी है क्योंकि अगर मौत न होती तो यह ज़मीन छोटी पड़ जाती और लोगों के खाने पीने के लाले पड़ जाते। (अल-क़वाएदु-ल-कलामिया, पेज 190) मौत से डरने का कारण
इस के कुछ कारण हैं।
1. मौत के बाद वाले जीवन पर ईमान ना होना।
2. मौत के बाद वाले जीवन पर ईमान का कमज़ोर होना।
3. दुनिया की लालच में उस के पीछे भागना।
4. आमाल नामे का नेकियों से ख़ाली और बुराईयों से भरा होना। (तफ़सीरे नमूना, जिल्द 24, पेज 121-122)
एक शख़्स ने इमाम अली नक़ी अ.स. से प्रश्न पूछा, तो आप ने फ़रमाया कि, क्योंकि लोग मौत की सच्चाई को नहीं जानते हैं इसीलिए डरते और घबराते हैं, अगर मौत की हक़ीक़त को समझते और अल्लाह के नेक और सच्चे बंदों में होते तो वह समझ जाते कि मरने के बाद का जीवन इस जीवन से अधिक अच्छा है।
अबूज़र से भी किसी ने इसी प्रकार का प्रश्न पूछा तो आप ने कहा क्योंकि ऐसे लोगों ने अपनी दुनिया को आबाद और आख़िरत को ख़राब और बर्बाद कर रखा है इसलिए मौत के नाम से कांपते हैं कि आबाद जगह को छोड़ कर वीराने को बसाना पड़ेगा। (रह तोशा राहियाने नूर, वर्ष 1380, पेज 195-196)
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