मेरा दोस्त शर्मिंदा हो गया...
यह बात सन् 1950 और 1951 की है उस समय मैं 11 या 12 साल का था, रज़ा ख़ान ने इस तरह से उलमा की तौहीन और उनका अपमान करना आम कर रखा था कि उसके ईरान से भाग जाने के बाद भी 10 साल तक यह सिलसिला चलता रहा, यहां तक कि इस्लामी क्रांति से थोड़ा पहले तक गली मोहल्ले में उलमा का अपमान इसी तरह जारी था।
विलायत पोर्टल :
रज़ा ख़ान के कामों में से एक यह था (यह काम भी बाक़ी कामों की तरह ब्रिटेन के इशारों पर था, क्योंकि उस की ख़ुद की अक़्ल और सोंच ऐसे कामों तक पहुंच ही नहीं सकती थी) कि, उलमा को बदनाम किया जाए, उसने न केवल उलमा को अम्मामा उतारने पर मजबूर किया बल्कि इतना ज़्यादा उन्हें बदनाम कर दिया कि गली मोहल्ले के बच्चे उन्हें देख कर मज़ाक़ उड़ाते थे, और यह काम हर जगह तेज़ी से फैल रहा था, यह बात सन् 1950 और 1951 की है उस समय मैं 11 या 12 साल का था, रज़ा ख़ान ने इस तरह से उलमा की तौहीन और उनका अपमान करना आम कर रखा था कि उसके ईरान से भाग जाने के बाद भी 10 साल तक यह सिलसिला चलता रहा, यहां तक कि इस्लामी क्रांति से थोड़ा पहले तक गली मोहल्ले में उलमा का अपमान इसी तरह जारी था।
हम मशहद में क्लास, जलसे और अहम मीटिंग कर रहे थे, हमारे क्लास और जलसों में न जाने कितने स्टूडेंट, डॉक्टर और प्रोफ़ेसर आते थे, मैं उनके लिए क़ुर्आन की तफ़सीर बयान करता था, एक दिन मैं अपने एक क़ाबिल दोस्त के साथ मशहद से तेहरान आने के लिए निकला, हम दोनों स्टेशन पर ट्रेन के चलने के समय की प्रतीक्षा कर रहे थे, तभी अचानक कुछ जवान लड़के यूरोप स्टाइल के कपड़े जींस वग़ैरह पहने हुए (जो पहनावा उस समय तक ईरान में आम हो चुका था) आये और इस तरह मेरा मज़ाक़ उड़ाया कि मेरा दोस्त शर्मिंदा हो गया, इस तरह मज़ाक़ उड़ाना पूरे ईरान में आम हो चुका था और यह किसी गुट या संगठन से विशेष नहीं था बल्कि हमारे जवानों की मानसिकता को बिगाड़ा गया था उनको गुमराह कर दिया गया था। (4 नवंबर 1990 में विशेष अदालत कर्मियों के बीच आपका बयान)
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