कोई भी किताब छापने को तैयार नहीं हुआ
इस किताब के लेखक का कहना है कि उस प्रेस वाले ने बाद में मुझे टेलीफ़ोन कर के कहा कि जिस दिन से मैं इस किताब को छापने के लिए तैयार हुआ हूं और सब को पता चला है, मुझे जान से मारने के धमकी भरे फ़ोन आ रहे हैं, जिस बयान और चुनाव की आज़ादी की वह बातें करते हैं ऐसा कुछ भी वहां नहीं है।
विलायत पोर्टल :
हमारे एक अधिकारी ने अमेरिकी दूतावास पर क़ब्ज़े के विषय में इंग्लिश में एक किताब लिखी थी, इस किताब को लिखने वाले ने ख़ुद मुझसे बताया कि मैं अमेरिका में जिस प्रेस को भी यह किताब छापने के लिए कह रहा था वह मना कर देते थे, आख़िरकार थक के वहां से कनाडा चला गया, वहां भी बहुत दौड़ धूप करके एक प्रेस वाला तैयार हुआ, इस किताब के लेखक का कहना है कि उस प्रेस वाले ने बाद में मुझे टेलीफ़ोन कर के कहा कि जिस दिन से मैं इस किताब को छापने के लिए तैयार हुआ हूं और सब को पता चला है, मुझे जान से मारने के धमकी भरे फ़ोन आ रहे हैं, जिस बयान और चुनाव की आज़ादी की वह बातें करते हैं ऐसा कुछ भी वहां नहीं है।
{ 9 मई 2005 में किरमान शहर की यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसरों और छात्रों के बीच आयतुल्लाह ख़ामेनई का बयान }
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